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आ वां॒ रथो॒ रथा॑नां॒ येष्ठो॑ यात्वश्विना। पु॒रू चि॑दस्म॒युस्ति॒र आ॑ङ्गू॒षो मर्त्ये॒ष्वा ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vāṁ ratho rathānāṁ yeṣṭho yātv aśvinā | purū cid asmayus tira āṅgūṣo martyeṣv ā ||

पद पाठ

आ। वा॒म्। रथः॑। रथा॑नाम्। येष्ठः॑। या॒तु॒। अ॒श्वि॒ना॒। पु॒रु। चि॒त्। अ॒स्म॒ऽयुः। ति॒रः। आ॒ङ्गू॒षः। मर्त्ये॑षु। आ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:74» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो (वाम्) तुम्हारा (रथानाम्) वाहनों के मध्य में (येष्ठः) अतिशय चलनेवाला (रथः) वाहन (यातु) चले (अस्मयुः) हम लोगों को प्राप्त होनेवाली (चित्) भी (मर्त्येषु) मनुष्यों में (आङ्गूषः) अङ्गों में हुई प्रशंसा (पुरू) बहुतों को (आ) सब प्रकार से प्राप्त हो और दुःखों का (तिरः) तिरस्कार कर के सुख प्राप्त होता है, उसको आप दोनों (आ) प्राप्त हूजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे अध्यापक और उपदेशक, शिल्पी जन उत्तम वाहनों को रचते हैं, वैसे सुख के साधनों को आप लोग उत्पन्न कीजिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अश्विना ! यो वां रथानां येष्ठो रथो यात्वस्मयुश्चिन्मर्त्येष्वाङ्गूषः सन् पुरू पुरून् प्रायातु दुःखानि तिरस्कृत्य सुखमायाति तं युवामा प्राप्नुयातम् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (वाम्) युवयोः (रथः) यानम् (रथानाम्) यानानां मध्ये (येष्ठः) अतिशयेन याता (यातु) गच्छतु (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (पुरू) पुरूणि (चित्) अपि (अस्मयुः) योऽस्मान् याति सः (तिरः) तिरस्करणे (आङ्गूषः) अङ्गेषु भवा प्रशंसा (मर्त्येषु) मनुष्येषु (आ) समन्तात् ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथाऽध्यापकोपदेशकाः शिल्पिन उत्तमानि यानानि निर्मिमते तथैव सुखसाधनानि यूयं सृजत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे शिकविणारे व उपदेश करणारे कारागीर उत्तम वाहने तयार करतात. तशी सुखाची साधने तुम्ही निर्माण करा. ॥ ८ ॥